जैसे सूर्य प्रकाशित होता है। वैसे ही ईमानदारी से सत्कर्म करो, सन्मार्ग पर चलो।
लोगों के उद्धार हेतु प्रयत्नशील रहो, उतनी ही उदारता बरतो जितनी सूरज बरतता है।
अब कौन कितना सुखी होना चाहता है या कोई तुमसे नाराज होना चाहता है यह उसका अधिकार क्षेत्र है।
तुमने अपना कर्तव्य कर दिया अब उस कर्तव्य के परिणाम को सोच सोच कर चिंतित मत होओ। तुमने मुस्करा के अभिवादन किया और कोई मुंह फेर कर चला गया या कोई बदले में अभिवादन किया।
दोनों ही परिस्थिति में तुम कुछ नहीं कर सकते। केवल तुम सूर्य की तरह अपने हिस्से का कर्तव्य पूरी ईमानदारी से निभाओ, जिससे तुम्हारे मन में कोई ग्लानि न हो और आत्मसंतुष्टि रहे।
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